पृथ्वी की आंतरिक संरचना (SHORT NOTES)
अध्याय - 3 : पृथ्वी की आंतरिक संरचना
- पृथ्वी के धरातल का विन्यास मुख्यतः भूगर्भ में होने वाली प्रक्रियाओं का परिणाम है।
- भूदृश्य को आकार देने में बहिर्जात व अंतर्जात प्रक्रियाएँ सहायक होती हैं।
- किसी भी प्रदेश की भू-आकृति को समझने के लिए भूगर्भिक क्रियाओं के प्रभाव को जानना आवश्यक है।
नोट : मानव जीवन मुख्यतः अपने क्षेत्रीय भू-आकृति से प्रभावित होता है।
- पृथ्वी की त्रिज्या 6371 किमी है।
- पृथ्वी की आंतरिक संरचना को जानने वाले स्रोत दो भागों में बाँटे जाते हैं – प्रत्यक्ष स्रोत एवं अप्रत्यक्ष स्रोत।
- प्रत्यक्ष स्रोत – चट्टानें एवं ज्वालामुखी।
- अप्रत्यक्ष स्रोत – तापमान, दबाव, घनत्व, उल्काएँ, गुरुत्वाकर्षण, चुंबकीय क्षेत्र एवं भूकंप।
भूकंप
- भूकंप एक प्राकृतिक घटना है।
- भूकंप का सामान्य अर्थ – पृथ्वी का कंपन।
- भूपर्पटी की शैलों की गहन दरारों को भ्रंश कहते हैं।
- भ्रंश के किनारे-किनारे ऊर्जा निकलती है जिससे तरंगें उत्पन्न होती हैं।
पृथ्वी के अंदर स्थित वह स्थान जहाँ से भूकंपीय तरंगें उत्पन्न होती हैं, भूकंप मूल / फोकस / उद्गम केंद्र कहलाता है।
भूतल पर वह स्थान जहाँ सबसे पहले भूकंपीय तरंगों का अनुभव होता है, अधिकेंद्र (Epicenter) कहलाता है।
भूकंपीय तरंगें
- भूकंपीय तरंगें दो प्रकार की होती हैं – भूगर्भिक तरंगें एवं धरातलीय तरंगें।
- भूगर्भिक तरंगें दो प्रकार की होती हैं – P तरंगें एवं S तरंगें।
P तरंगें
- इन्हें प्राथमिक तरंगें कहा जाता है।
- ये सबसे तेज गति से चलने वाली तरंगें हैं।
- ये ठोस, द्रव एवं गैस – तीनों माध्यमों से गुजर सकती हैं।
- केवल P तरंगें ही पृथ्वी के केंद्र से गुजर सकती हैं।
S तरंगें
- इन्हें द्वितीयक तरंगें कहा जाता है।
- ये केवल ठोस माध्यम में ही चल सकती हैं।
- ये पृथ्वी के द्रव कोर से नहीं गुजर सकतीं।
L तरंगें
- ये तरंगें केवल धरातल पर चलती हैं।
- ये सबसे अधिक विनाशकारी होती हैं।
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P, S एवं L भूकंपीय तरंगों की तुलनात्मक तालिका
| आधार | P तरंगें (Primary Waves) | S तरंगें (Secondary Waves) | L तरंगें (Long / Surface Waves) |
|---|---|---|---|
| उत्पत्ति स्थान | भूकंप उद्गम केंद्र से | भूकंप उद्गम केंद्र से | भूतल पर पहुँचने के बाद |
| प्रकृति | अनुदैर्ध्य तरंगें | अनुप्रस्थ तरंगें | अनुप्रस्थ एवं अनुदैर्ध्य दोनों का मिश्रण |
| गति | सबसे अधिक (सबसे तेज) | P तरंगों से कम | सबसे कम |
| माध्यम | ठोस, द्रव एवं गैस | केवल ठोस | केवल धरातल |
| पृथ्वी के केंद्र से गुजरना | हाँ | नहीं | नहीं |
| पहुँचने का क्रम | सबसे पहले | P तरंगों के बाद | सबसे अंत में |
| विनाश क्षमता | सबसे कम | मध्यम | सबसे अधिक |
| अन्य नाम | दाब तरंगें | कतरनी तरंगें | धरातलीय तरंगें |
पृथ्वी की संरचना
- पृथ्वी की आंतरिक संरचना को तीन परतों में बाँटा गया है –
पृथ्वी की आंतरिक तीन परतों की तुलनात्मक तालिका
| आधार | भूपर्पटी (Crust) | मेंटल (Mantle) | कोर (Core) |
|---|---|---|---|
| स्थिति | सबसे बाहरी परत | भूपर्पटी और कोर के बीच स्थित | सबसे आंतरिक परत |
| गहराई / मोटाई | 5–70 किमी | लगभग 2900 किमी | लगभग 2900–6371 किमी |
| अवस्था | ठोस | अर्ध-द्रव / ठोस | बाह्य कोर – द्रव आंतरिक कोर – ठोस |
| मुख्य तत्व | सिलिका (Si) एवं एल्युमिना (Al) | सिलिका, मैग्नीशियम | लोहा (Fe) एवं निकेल (Ni) |
| घनत्व | सबसे कम | मध्यम | सबसे अधिक |
| विशेष नाम | SIAL | SIMA | NIFE |
| महत्व | मानव निवास, कृषि, खनिज संसाधन | ज्वालामुखी लावा का स्रोत | चुंबकीय क्षेत्र का स्रोत |
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भूपर्पटी (Crust)
- यह पृथ्वी की सबसे बाहरी एवं सबसे पतली परत है।
- महासागरों के नीचे औसत मोटाई – 5 किमी।
- महाद्वीपों के नीचे औसत मोटाई – 30 किमी।
- हिमालय के नीचे मोटाई – लगभग 70 किमी।
मेंटल (Mantle)
- मेंटल का विस्तार मोहो असांतत्य से 2900 किमी गहराई तक है।
- ऊपरी भाग को दुर्बलता मंडल कहते हैं।
- यहीं से ज्वालामुखी लावा का स्रोत मिलता है।
कोर (Core)
- कोर और मेंटल की सीमा 2900 किमी गहराई पर है।
- बाह्य कोर द्रव अवस्था में होता है।
- आंतरिक कोर ठोस अवस्था में होता है।
- कोर मुख्यतः निकेल एवं लौह (NiFe) से बना होता है।
ज्वालामुखी
- वह छिद्र जिससे लावा, राख, गैस आदि निकलते हैं, ज्वालामुखी कहलाता है।
- भूपटल के नीचे द्रव अवस्था में इसे मैग्मा कहते हैं।
- धरातल पर पहुँचने पर वही लावा कहलाता है।
ज्वालामुखी के प्रकार एवं उनसे निकलने वाले पदार्थ
ज्वालामुखी के प्रकार
1. सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcano)
वे ज्वालामुखी जिनसे वर्तमान समय में या हाल के भू-वैज्ञानिक काल में लावा, गैस या राख निकलती रहती है, सक्रिय ज्वालामुखी कहलाते हैं।
- इनमें बार-बार उद्गार होते रहते हैं।
- ये पृथ्वी की सतह को निरंतर परिवर्तित करते रहते हैं।
- उदाहरण – एटना (इटली), किलाउआ (हवाई)।
2. सुप्त ज्वालामुखी (Dormant Volcano)
वे ज्वालामुखी जिनमें लंबे समय से कोई उद्गार नहीं हुआ हो, परंतु भविष्य में पुनः सक्रिय होने की संभावना बनी रहती है, सुप्त ज्वालामुखी कहलाते हैं।
- ये अस्थायी रूप से निष्क्रिय रहते हैं।
- इनसे अचानक विस्फोट हो सकता है।
- उदाहरण – वेसुवियस (इटली)।
3. मृत ज्वालामुखी (Extinct Volcano)
वे ज्वालामुखी जिनमें बहुत लंबे समय से कोई उद्गार नहीं हुआ है और भविष्य में भी उद्गार होने की संभावना नहीं होती, मृत ज्वालामुखी कहलाते हैं।
- ये स्थायी रूप से निष्क्रिय हो जाते हैं।
- इनके मुख सामान्यतः नष्ट हो जाते हैं।
- उदाहरण – किलिमंजारो (अफ्रीका)।
4. उद्गार की प्रकृति के आधार पर ज्वालामुखी
- केंद्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखी – जिनसे लावा एक निश्चित मुख से निकलता है।
- दरारी उद्गार वाले ज्वालामुखी – जिनमें दरारों से लावा निकलता है।
भारत का दक्कन ट्रैप दरारी उद्गार ज्वालामुखी का प्रमुख उदाहरण है।
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ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थ
1. लावा (Lava)
भूपटल के नीचे द्रव अवस्था में पिघली हुई चट्टान को मैग्मा कहते हैं। जब यही पदार्थ धरातल पर पहुँचता है तो लावा कहलाता है।
- लावा बेसाल्टिक, एंडेसाइटिक एवं रियोलाइटिक हो सकता है।
- लावा से विस्तृत पठारों एवं मैदानों का निर्माण होता है।
2. ज्वालामुखीय गैसें
ज्वालामुखी उद्गार के समय अनेक प्रकार की गैसें बाहर निकलती हैं।
- जलवाष्प (Water Vapour)
- कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂)
- सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂)
- हाइड्रोजन सल्फाइड (H₂S)
3. ठोस पदार्थ (Pyroclastic Materials)
ज्वालामुखी उद्गार के दौरान निकलने वाले ठोस कणों को पाइरोक्लास्टिक पदार्थ कहा जाता है।
| पदार्थ | विवरण |
|---|---|
| राख (Ash) | अत्यंत सूक्ष्म ज्वालामुखीय कण |
| लैपिली (Lapilli) | मध्यम आकार के ठोस कण |
| ज्वालामुखीय बम | बड़े आकार के ठोस टुकड़े |
