महाद्वीप एवं महासागरों का वितरण / Continents and Oceans Class 11th Geography Notes

Sharvan Patel
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महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

अध्याय-4 : महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

  • पृथ्वी के कुल कितने प्रतिशत भाग पर स्थल (महाद्वीप) हैं – 29% भाग पर।
  • पृथ्वी के कुल कितने प्रतिशत भाग पर जल (महासागर) है – 71% भाग पर।

महाद्वीपीय प्रवाह

  • किस महासागर की दोनों तरफ की तटरेखा में आश्चर्यजनक समानता है – अटलांटिक महासागर की।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार पहले कौनसे महाद्वीप आपस में जुड़े हुए थे – दक्षिण अमेरिका महाद्वीप तथा यूरोप व अफ्रीका महाद्वीप।
  • सबसे पहले सन 1596 में इन महाद्वीपों के जुड़े होने की संभावना व्यक्त की थी – अब्राहम ऑस्टेवेलियस (डच मानवचित्रकार)।
  • सबसे पहले किसने इन तीनों महाद्वीपों को अपने मानवचित्र में इकट्ठा दिखाया था – एंटोनियो पैलेविनी ने।
  • सन 1912 में महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत दिया – अल्फ्रेड वेगनर (जर्मन मौसमविद) ने।
  • अल्फ्रेड वेगनर का महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत संबंधित था – महाद्वीप और महासागरों के वितरण से।

नोट – इस सिद्धांत के अनुसार पहले सभी महाद्वीप एक अकेले भूखंड में जुड़े हुए थे, जो एक बड़े महासागर से घिरा हुआ था।

  • वेगनर ने सभी महाद्वीपों के जुड़े उस अकेले भूखंड को क्या नाम दिया – पैंजिया।
  • वेगनर के अनुसार पैंजिया चारों तरफ से किस महासागर से घिरा हुआ था – पैंथालासा से।
  • वेगनर के अनुसार सर्वप्रथम 20 करोड़ वर्ष पूर्व पैंजिया का विभाजन हुआ – दो भागों में (लॉरेशिया और गोंडवाना लैंड)।
  • उत्तरी भाग – लॉरेशिया।
  • दक्षिणी भाग – गोंडवाना लैंड।
नोट – आगे चलकर लॉरेशिया और गोंडवाना लैंड अनेक छोटे हिस्सों में बँट गए, जो आज के महाद्वीप के रूप में स्थित हैं।

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महाद्वीपीय विस्थापन के पक्ष में प्रमाण

महाद्वीपीय विस्थापन के पक्ष में दिए गए प्रमुख प्रमाण –

  • महाद्वीपों में साम्य।
  • प्रवाह संबंधी बल।
  • महासागरीय अधःस्थल की बनावट।

महाद्वीपों में साम्य

  • दक्षिण अमेरिका व अफ्रीका के आमने-सामने की रेखाओं में अद्भुत समानता है।
  • 200 करोड़ वर्ष प्राचीन शैल समूह की एक पट्टी ब्राजील तट और पश्चिम अफ्रीका के तट पर मिलती है, जो आपस में मेल खाती है।
  • अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका की तट रेखा के पास पाए जाने वाले प्रारंभिक समुद्री निक्षेप जुरासिक काल के हैं, जिससे पता चलता है कि इससे पहले वहाँ महासागर की उपस्थिति नहीं थी।
  • भारत में पाए जाने वाले गोंडवाना श्रेणी के तलछटों के प्रतिरूप दक्षिणी गोलार्ध के विभिन्न स्थलखंडों (अफ्रीका, फॉकलैंड द्वीप, मेडागास्कर, अंटार्कटिका और ऑस्ट्रेलिया) में मिलते हैं।

नोट – गोंडवाना श्रेणी के आधार तल में जमे टीलाइट (हिमानी निक्षेपण से बनी अवसादी चट्टानें) हैं, जो विस्तृत व लंबे समय तक हिमावरण की ओर इशारा करते हैं।

  • घाना तट (अफ्रीका महाद्वीप) पर सोने के बड़े निक्षेप उपस्थित हैं, जबकि सोनेयुक्त शिराएँ ब्राजील (दक्षिण अमेरिका) में पाई जाती हैं। इससे स्पष्ट है कि ये दोनों महाद्वीप एक-दूसरे से जुड़े हुए थे।
  • लैमरूर भारत, मेडागास्कर, अफ्रीका में मिलते हैं। कुछ वैज्ञानिकों ने इन तीनों स्थलखंडों को जोड़कर एक सतत स्थलखंड लेमरूरिया की उपस्थिति को स्वीकारा है।
  • मेसोसॉरस नामक छोटे रेंगने वाले जीव केवल उथले खारे पानी में जीवित रह सकते हैं, जिनकी अवस्थियाँ दक्षिण अफ्रीका के केप प्रांत और ब्राजील के इरावर शैल समूह में मिली हैं, जिससे यह स्पष्ट है कि ये दोनों महाद्वीप एक-दूसरे से जुड़े हुए थे।

प्रवाह संबंधी बल

  • वेगनर के अनुसार महाद्वीपीय विस्थापन के दो कारण –
  • ध्रुवीय फ्लीइंग बल।
  • ज्वारीय बल।

ध्रुवीय फ्लीइंग बल संबंधित है – पृथ्वी के घूर्णन से।

नोट – घूर्णन के कारण ही पृथ्वी भूमध्य रेखा पर उभरी हुई है।

ज्वारीय बल संबंधित है – सूर्य व चंद्रमा के आकर्षण से।

नोट – ज्वारीय बल के कारण महासागरों में ज्वार उत्पन्न होते हैं।

महासागरीय अधःस्थल की बनावट

  • गहराई व उच्चावच के आधार पर महासागरीय तल को तीन भागों में बाँटा जा सकता है – महाद्वीपीय सीमा, गहरे समुद्री बेसिन, मध्य महासागरीय कटक।
  • महाद्वीप के किनारे और गहरे समुद्री बेसिन के बीच का भाग कहलाता है – महाद्वीपीय सीमा।
  • महाद्वीपीय सीमा में शामिल हैं – महाद्वीपीय मग्न तट, महाद्वीपीय ढाल, महाद्वीपीय उभार और गहरी महासागरीय खाइयाँ।
  • महाद्वीपीय तटों व मध्य महासागरीय कटकों के बीच पाए जाते हैं – गहरे समुद्री बेसिन (वितलीय मैदान)।

नोट – इस क्षेत्र में महाद्वीपों से बहाकर लाए गए अवसाद इनके तटों से दूर निक्षेपित होते हैं।

  • मध्य महासागरीय कटक आपस में जुड़े हुए पर्वतों की एक श्रृंखला है।
  • महासागरीय जल में डूबी हुई पृथ्वी के धरातल पर पाई जाने वाली सबसे लंबी पर्वत श्रृंखला – मध्य महासागरीय कटक।

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प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत की कमियों को दूर करने के लिए प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत प्रस्तुत किया गया।

इस सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी की भूपर्पटी एवं ऊपरी मैंटल कई कठोर खंडों में विभक्त है, जिन्हें प्लेट कहा जाता है।

  • इन प्लेटों का संचलन दुर्बलता मंडल (Asthenosphere) पर होता है।
  • प्लेटों की गति के कारण भूकंप, ज्वालामुखी एवं पर्वत निर्माण होते हैं।

प्रमुख प्लेटें

  • प्रशांत प्लेट
  • उत्तर अमेरिकी प्लेट
  • दक्षिण अमेरिकी प्लेट
  • अफ्रीकी प्लेट
  • यूरेशियन प्लेट
  • ऑस्ट्रेलियाई प्लेट
  • अंटार्कटिक प्लेट

प्लेटों की गति के प्रकार

  • अपसारी सीमा – जहाँ प्लेटें एक-दूसरे से दूर हटती हैं।
  • अभिसारी सीमा – जहाँ प्लेटें एक-दूसरे की ओर बढ़ती हैं।
  • परिवर्ती सीमा – जहाँ प्लेटें एक-दूसरे के समानांतर खिसकती हैं।

मध्य महासागरीय कटक अपसारी प्लेट सीमा का प्रमुख उदाहरण है।

महासागरीय अधःस्थल का विस्तार (Sea Floor Spreading)

समुद्री तल प्रसार सिद्धांत के अनुसार महासागरीय तल का निर्माण मध्य महासागरीय कटकों पर होता है।

  • यह सिद्धांत हैरी हैस ने दिया।
  • कटकों से निकलने वाला मैग्मा ठंडा होकर नई महासागरीय भूपर्पटी बनाता है।
  • पुरानी महासागरीय भूपर्पटी अभिसारी सीमाओं पर नष्ट होती है।

भारतीय प्लेट की गति

  • भारतीय प्लेट पहले गोंडवाना लैंड का भाग थी।
  • यह लगभग 5 करोड़ वर्ष पूर्व उत्तर की ओर खिसकी।
  • भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के टकराव से हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ।
  • यह टकराव आज भी जारी है।
हिमालय युवा मोड़दार पर्वत का उत्कृष्ट उदाहरण है।

निष्कर्ष

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत, समुद्री तल प्रसार सिद्धांत और प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत – तीनों मिलकर महासागरों और महाद्वीपों के वर्तमान वितरण को स्पष्ट करते हैं।

प्लेट सीमाएँ (Plate Boundaries)

जब एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे धँसती है और वहाँ भूपर्पटी नष्ट होती है, तो उसे कहते हैं अभिसरण सीमा

वह स्थान जहाँ प्लेट धँसती है, कहलाता है प्रविष्ठन क्षेत्र

अभिसरण तीन प्रकार से हो सकता है –

  • दो महाद्वीपीय प्लेटों के बीच।
  • महासागरीय एवं महाद्वीपीय प्लेट के बीच।
  • दो महासागरीय प्लेटों के बीच।

वह सीमा जहाँ न तो नई भूपर्पटी का निर्माण होता है और न ही भूपर्पटी का विनाश होता है, कहलाती है रूपांतर सीमा

नोट – इस सीमा पर प्लेटें एक-दूसरे के साथ-साथ क्षैतिज दिशा में सरक जाती हैं।

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रूपांतर भ्रंश दो प्लेटों को अलग करने वाले तल हैं, जो सामान्यतः मध्य महासागरीय कटक से लंबवत स्थिति में पाए जाते हैं।

प्लेट प्रवाह की दर समझने में सहायक सिद्ध हुई है – मध्य महासागरीय कटक के समानांतर सामान्य एवं उपक्रमण चुंबकीय क्षेत्रों की पट्टियाँ।

  • सबसे कम प्लेट प्रवाह दर – आर्कटिक कटक (2.5 सेमी प्रति वर्ष से भी कम)।
  • सबसे अधिक प्लेट प्रवाह दर – पूर्वी प्रशांत महासागरीय उभार (5 सेमी प्रति वर्ष)।

प्लेटों को संचालित करने वाले बल

दृढ़ प्लेट के नीचे चलायमान चट्टानें वृत्ताकार रूप में चलती हैं और उष्ण पदार्थ धरातल पर पहुँचता है।

उष्ण पदार्थ धरातल पर पहुँचकर फैलता है, ठंडा होता है, फिर गहराई में जाकर नष्ट हो जाता है।

यह चक्र बार-बार दोहराया जाता है, जिसे कहते हैं संवहन प्रवाह

पृथ्वी के भीतर ताप उत्पत्ति के दो माध्यम हैं – रेडियोधर्मी तत्वों का क्षय और अवशिष्ट ताप।

दृढ़ प्लेटों के नीचे दुर्बल एवं उष्ण मैंटल होता है, जो प्लेटों को प्रवाहित करता है।

भारतीय प्लेट का संचलन

  • भारतीय प्लेट में प्रायद्वीपीय भारत एवं ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के भाग शामिल हैं।
  • हिमालय पर्वत श्रेणियों के साथ पाया जाने वाला प्रविष्ठन क्षेत्र इसकी उत्तरी सीमा निर्धारित करता है, जो दो महाद्वीपीय प्लेटों की सीमा है।
  • भारतीय प्लेट की पूर्वी सीमा ऑस्ट्रेलिया के पूर्व में दक्षिण-पश्चिमी प्रशांत महासागर में महासागरीय कटक के रूप में है।
  • भारतीय प्लेट की पश्चिमी सीमा पाकिस्तान की किरथर श्रेणियों का अनुसरण करती हुई मकरान तट के साथ-साथ दक्षिण-पूर्वी चागोस द्वीप समूह के साथ लाल सागर द्रोणी तक जाती है।
  • भारतीय और अंटार्कटिक प्लेट की सीमा महासागरीय कटक से निर्धारित होती है।

नोट – यह एक अपसारी सीमा है, जो लगभग पूर्व-पश्चिम दिशा में होती हुई न्यूज़ीलैंड के दक्षिण में विस्तारित तल में मिल जाती है।

भारतीय प्लेट का ऐतिहासिक विकास

  • लगभग 22.5 करोड़ वर्ष पूर्व टेथीस सागर ऑस्ट्रेलिया और एशिया महाद्वीप को अलग करता था।
  • लगभग 20 करोड़ वर्ष पूर्व पैंजिया के विभाजन के बाद भारत ने उत्तर दिशा की ओर खिसकना प्रारंभ किया।
  • 4 से 5 करोड़ वर्ष पूर्व भारत एशिया से टकराया, जिससे हिमालय पर्वत का उत्थान हुआ।
  • लगभग 6 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय प्लेट के यूरेशियन प्लेट की ओर प्रवाह के दौरान लावा प्रवाह से दक्कन ट्रैप का निर्माण हुआ।
  • लगभग 4 करोड़ वर्ष पूर्व हिमालय की उत्पत्ति आरंभ हुई और वर्तमान में भी इसके निर्माण की प्रक्रिया जारी है।

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