सौर विविरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान
पृथ्वी अपनी ऊर्जा का लगभग संपूर्ण भाग सूर्य से प्राप्त करती है।
पृथ्वी सूर्य से प्राप्त ऊर्जा को पार्थिव विविरण के रूप में वापस अंतरिक्ष में विविरित कर देती है।
पृथ्वी के अलग-अलग स्थानों पर प्राप्त ताप की मात्रा अलग-अलग होती है, जिससे वायुमंडलीय दाब में भिन्नता होती है।
वायुमंडलीय दाब में भिन्नता के कारण पवनें चलती हैं, जो ताप का स्थानांतरण एक स्थान से दूसरे स्थान पर करती हैं।
सौर विविरण
पृथ्वी के पृष्ठ पर प्राप्त होने वाली ऊर्जा का अधिकांश भाग लघु तरंगदैर्ध्य के रूप में प्राप्त होता है।
पृथ्वी को प्राप्त होने वाली ऊर्जा को आगामी सौर विविरण या सूर्यताप कहा जाता है।
पृथ्वी औसत रूप से वायुमंडल की ऊपरी सतह पर 1.94 कैलोरी प्रति वर्ग सेंटीमीटर प्रति मिनट ऊर्जा प्राप्त करती है।
वायुमंडल की ऊपरी सतह पर प्राप्त होने वाली ऊर्जा में प्रति वर्ष थोड़ा परिवर्तन होता है, जिसका कारण पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी में आने वाला अंतर है।
पृथ्वी और सूर्य के बीच दूरी
- पृथ्वी और सूर्य के बीच की अधिकतम दूरी 15 करोड़ 20 लाख किलोमीटर है।
- पृथ्वी और सूर्य के बीच की न्यूनतम दूरी 14 करोड़ 70 लाख किलोमीटर है।
- सूर्य की अधिकतम व न्यूनतम दूरी के मध्य अंतर 50 लाख किलोमीटर होता है।
- पृथ्वी और सूर्य के बीच की अधिकतम दूरी (अपसौर) 4 जुलाई को होती है।
- पृथ्वी और सूर्य के बीच की न्यूनतम दूरी (उपसौर) 3 जनवरी को होती है।
पृथ्वी द्वारा प्राप्त वार्षिक सूर्यताप 3 जनवरी को 4 जुलाई की अपेक्षा अधिक होता है, लेकिन सूर्यताप की इस भिन्नता का प्रभाव अन्य कारणों के कारण कम हो जाता है।
स्थल व समुद्र का वितरण, वायुमंडलीय परिसंचरण आदि कारणों से पृथ्वी की सतह पर प्रतिदिन के मौसम परिवर्तन पर इसका अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है।
पृथ्वी की सतह पर सूर्यताप में भिन्नता
पृथ्वी की सतह पर सूर्य से प्राप्त होने वाले ताप की मात्रा सभी स्थानों पर समान नहीं होती है।
पृथ्वी की गोलाकार आकृति के कारण सूर्य की किरणें विभिन्न अक्षांशों पर विभिन्न कोणों पर गिरती हैं।
भूमध्य रेखा के निकट सूर्य की किरणें लगभग लम्बवत् पड़ती हैं, जबकि ध्रुवों की ओर सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं।
लम्बवत् किरणें कम क्षेत्र में अधिक ऊर्जा प्रदान करती हैं, जबकि तिरछी किरणें अधिक क्षेत्र में फैल जाती हैं।
यही कारण है कि भूमध्य रेखीय क्षेत्र अधिक गर्म तथा ध्रुवीय क्षेत्र अत्यधिक शीत होते हैं।
सूर्य किरणों के तिरछे पड़ने के कारण
- तिरछी किरणों को वायुमंडल की अधिक मोटी परत से होकर गुजरना पड़ता है।
- अधिक दूरी तय करने के कारण ऊर्जा का कुछ भाग अवशोषित एवं प्रकीर्णित हो जाता है।
- तिरछी किरणों की ऊर्जा अधिक क्षेत्र में फैल जाती है।
वायुमंडल में सौर विविरण की क्रियाएँ
जब सौर विविरण वायुमंडल में प्रवेश करता है, तो वह वायुमंडल के विभिन्न तत्वों के साथ कई प्रकार की क्रियाएँ करता है।
अवशोषण (Absorption)
वायुमंडल की कुछ गैसें सौर विविरण का एक भाग अवशोषित कर लेती हैं।
- ओजोन गैस पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करती है।
- जलवाष्प एवं कार्बन डाइऑक्साइड अवरक्त किरणों को अवशोषित करती हैं।
प्रकीर्णन (Scattering)
वायुमंडल में उपस्थित गैसें एवं धूल कण सौर किरणों को विभिन्न दिशाओं में फैला देते हैं, जिसे प्रकीर्णन कहते हैं।
प्रकीर्णन के कारण ही आकाश का रंग नीला दिखाई देता है।
परावर्तन (Reflection)
सौर विविरण का एक भाग मेघों, हिमाच्छादित सतहों तथा पृथ्वी की सतह से परावर्तित होकर वापस अंतरिक्ष में चला जाता है।
परावर्तन की मात्रा सतह की प्रकृति पर निर्भर करती है।
एल्बिडो (Albedo)
पृथ्वी की सतह द्वारा परावर्तित सूर्यताप के अनुपात को एल्बिडो कहा जाता है।
एल्बिडो का मान 0 से 100 प्रतिशत के बीच होता है।
- अधिक परावर्तन वाली सतहों का एल्बिडो अधिक होता है।
- कम परावर्तन वाली सतहों का एल्बिडो कम होता है।
हिमाच्छादित सतहों का एल्बिडो अधिक होता है, जबकि वनों एवं महासागरों का एल्बिडो कम होता है।
पृथ्वी का औसत एल्बिडो लगभग 30 प्रतिशत माना जाता है।
पृथ्वी का ऊष्मा संतुलन
पृथ्वी पर आने वाली तथा पृथ्वी से वापस जाने वाली ऊर्जा के बीच संतुलन को पृथ्वी का ऊष्मा संतुलन कहा जाता है।
यदि पृथ्वी प्राप्त ऊर्जा से अधिक ऊर्जा बाहर भेज दे, तो पृथ्वी ठंडी हो जाएगी, और यदि कम ऊर्जा बाहर भेजे, तो पृथ्वी अधिक गर्म हो जाएगी।
वर्तमान में पृथ्वी पर आने वाली और बाहर जाने वाली ऊर्जा लगभग संतुलन में है।
ऊष्मा संतुलन की प्रक्रिया
- सौर विविरण का एक भाग वायुमंडल द्वारा अवशोषित किया जाता है।
- एक भाग पृथ्वी की सतह द्वारा अवशोषित किया जाता है।
- एक भाग परावर्तित होकर अंतरिक्ष में वापस चला जाता है।
पृथ्वी द्वारा अवशोषित ऊर्जा को पृथ्वी पार्थिव विविरण के रूप में वापस अंतरिक्ष में भेजती है।
पार्थिव विविरण
पृथ्वी द्वारा अवशोषित ऊर्जा लंबी तरंगदैर्ध्य के रूप में वायुमंडल एवं अंतरिक्ष में पुनः उत्सर्जित की जाती है।
इस प्रकार पृथ्वी एक ऊष्मा स्रोत के रूप में कार्य करती है।
पार्थिव विविरण का एक भाग वायुमंडल की गैसों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है।
ग्रीनहाउस प्रभाव
ग्रीनहाउस प्रभाव वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा वायुमंडल की कुछ गैसें पृथ्वी से निकलने वाले पार्थिव विविरण को अवशोषित कर लेती हैं।
इसके फलस्वरूप पृथ्वी की सतह का तापमान बढ़ जाता है।
ग्रीनहाउस प्रभाव के अभाव में पृथ्वी का औसत तापमान वर्तमान तापमान से लगभग 15 डिग्री सेल्सियस कम होता।
ग्रीनहाउस गैसें
- कार्बन डाइऑक्साइड
- जलवाष्प
- मीथेन
- नाइट्रस ऑक्साइड
- क्लोरोफ्लोरोकार्बन
ग्रीनहाउस प्रभाव पृथ्वी पर जीवन के लिए आवश्यक है, लेकिन इसका अत्यधिक बढ़ना ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है।
तापमान
तापमान किसी वस्तु या स्थान की गर्माहट या ठंडक की माप है।
वायुमंडलीय तापमान का मापन थर्मामीटर की सहायता से किया जाता है।
तापमान को प्रभावित करने वाले कारक
1. अक्षांश
किसी स्थान का अक्षांश तापमान को प्रभावित करने वाला सबसे महत्वपूर्ण कारक है।
भूमध्य रेखा के समीप सूर्य की किरणें लगभग लम्बवत् पड़ती हैं, जिससे अधिक ऊष्मा प्राप्त होती है, जबकि ध्रुवों की ओर किरणें तिरछी पड़ती हैं और तापमान कम हो जाता है।
2. ऊँचाई
ऊँचाई बढ़ने के साथ तापमान में कमी आती जाती है।
सामान्यतः प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर तापमान में लगभग 1 डिग्री सेल्सियस की कमी आती है।
इसका कारण यह है कि ऊँचाई पर वायु विरल हो जाती है और ऊष्मा धारण करने की क्षमता घट जाती है।
3. स्थल एवं जल का वितरण
स्थल एवं जल के ताप ग्रहण एवं त्याग करने की क्षमता एक-दूसरे से भिन्न होती है।
स्थल शीघ्रता से गर्म एवं ठंडा हो जाता है, जबकि जल धीरे-धीरे गर्म एवं ठंडा होता है।
इसी कारण तटीय क्षेत्रों में तापमान सम होता है, जबकि महाद्वीपीय आंतरिक भागों में तापमान का अंतर अधिक होता है।
4. समुद्री धाराएँ
समुद्री धाराएँ तटीय क्षेत्रों के तापमान को प्रभावित करती हैं।
उष्ण समुद्री धाराएँ तटीय क्षेत्रों के तापमान को बढ़ाती हैं, जबकि शीत समुद्री धाराएँ तापमान को घटा देती हैं।
5. पवनें
पवनें अपने साथ ऊष्मा को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाती हैं।
यदि पवनें उष्ण क्षेत्रों से आती हैं, तो तापमान बढ़ जाता है, और यदि शीत क्षेत्रों से आती हैं, तो तापमान घट जाता है।
6. मेघावरण
मेघावरण भी तापमान को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है।
दिन में मेघ सूर्य की किरणों को रोकते हैं, जिससे तापमान कम हो जाता है, जबकि रात में यही मेघ पृथ्वी की ऊष्मा को बाहर जाने से रोकते हैं, जिससे तापमान अधिक बना रहता है।
किसी स्थान के तापमान पर एक नहीं, बल्कि उपर्युक्त सभी कारकों का संयुक्त प्रभाव पड़ता है।
दैनिक तापमान परिवर्तन
किसी स्थान के तापमान में एक दिन के दौरान होने वाले परिवर्तन को दैनिक तापमान परिवर्तन कहते हैं।
दिन में अधिकतम तापमान सामान्यतः दोपहर के बाद लगभग 2 बजे होता है।
रात्रि में न्यूनतम तापमान सूर्योदय से ठीक पहले पाया जाता है।
वार्षिक तापमान परिवर्तन
वर्ष भर में तापमान में होने वाले परिवर्तन को वार्षिक तापमान परिवर्तन कहा जाता है।
भूमध्य रेखा के समीप वार्षिक तापमान परिवर्तन कम होता है, जबकि महाद्वीपीय आंतरिक भागों में यह अधिक पाया जाता है।
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