वायुमंडल का संगठन तथा संरचना
अध्याय – 7 : वायुमंडल का संगठन तथा संरचना
हमारी पृथ्वी चारों ओर से वायु की एक घनी चादर से घिरी हुई है, जिसे वायुमंडल कहते हैं।
गतिशील वायु को पवन कहा जाता है।
वायुमंडल के कुल द्रव्यमान का लगभग 99 प्रतिशत भाग पृथ्वी की सतह से लगभग 32 किलोमीटर की ऊँचाई तक स्थित होता है।
वायुमंडल का संगठन
वायुमंडल मुख्य रूप से गैसों, जलवाष्प एवं धूल कणों से मिलकर बना होता है।
- ऑक्सीजन की मात्रा 120 किलोमीटर की ऊँचाई पर नगण्य हो जाती है।
- कार्बन डाइऑक्साइड एवं जलवाष्प पृथ्वी की सतह से लगभग 90 किलोमीटर तक पाए जाते हैं।
- मौसम विज्ञान की दृष्टि से कार्बन डाइऑक्साइड एक महत्वपूर्ण गैस है।
- कार्बन डाइऑक्साइड सौर विकिरण के लिए पारदर्शी, लेकिन पार्थिव विकिरण के लिए अपारदर्शी होती है।
- ग्रीन हाउस प्रभाव के लिए मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड उत्तरदायी है।
पिछले कुछ समय में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में निरंतर वृद्धि हो रही है, जिसका प्रमुख कारण जीवाश्म ईंधनों का अत्यधिक दहन है।
- ओजोन गैस सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करती है।
- ओजोन गैस पृथ्वी की सतह से लगभग 10 से 50 किलोमीटर की ऊँचाई तक पाई जाती है।
ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ जलवाष्प की मात्रा घटती जाती है।
भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर भी जलवाष्प की मात्रा कम होती जाती है।
- उष्ण एवं आर्द्र उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में जलवाष्प की मात्रा लगभग 4 प्रतिशत होती है।
- मरुस्थलीय एवं ध्रुवीय क्षेत्रों में जलवाष्प की मात्रा 1 प्रतिशत से भी कम होती है।
जलवाष्प एक कंबल की तरह कार्य करती है। यह पृथ्वी को न तो अत्यधिक गर्म होने देती है और न ही अत्यधिक ठंडा।
धूल कण (Dust Particles)
वायुमंडल में धूल कण अत्यंत सूक्ष्म ठोस कणों के रूप में उपस्थित रहते हैं। इनमें मिट्टी, धुआँ, राख, परागकण तथा समुद्री लवण के कण शामिल होते हैं।
धूल कणों की मात्रा स्थान एवं समय के अनुसार बदलती रहती है। मरुस्थलीय क्षेत्रों एवं औद्योगिक नगरों में इनकी मात्रा अधिक पाई जाती है।
- धूल कण संघनन नाभिक के रूप में कार्य करते हैं।
- इन्हीं धूल कणों के कारण बादल, कुहासा एवं वर्षा संभव हो पाती है।
- धूल कण सूर्य के प्रकाश का प्रकीर्णन करते हैं, जिससे आकाश नीला दिखाई देता है।
धूल कणों की अनुपस्थिति में वायुमंडल में संघनन की प्रक्रिया संभव नहीं होती।
वायुमंडल की संरचना
तापमान में ऊँचाई के साथ होने वाले परिवर्तन के आधार पर वायुमंडल को विभिन्न परतों में विभाजित किया गया है।
वायुमंडल की प्रमुख परतें हैं – क्षोभमंडल, समताप मंडल, मध्यम मंडल, आयन मंडल तथा बहिर्मंडल।
क्षोभमंडल (Troposphere)
क्षोभमंडल वायुमंडल की सबसे निचली परत है। यह पृथ्वी की सतह से सटी हुई होती है।
- सभी मौसम संबंधी घटनाएँ इसी मंडल में घटित होती हैं।
- वायुमंडल के कुल द्रव्यमान का लगभग 75 प्रतिशत भाग इसी मंडल में पाया जाता है।
- इस मंडल में ऊँचाई के साथ तापमान घटता जाता है।
क्षोभमंडल की औसत ऊँचाई भूमध्य रेखा पर लगभग 16 किलोमीटर तथा ध्रुवों पर लगभग 8 किलोमीटर होती है।
इस मंडल की ऊपरी सीमा को क्षोभसीमा (Tropopause) कहा जाता है।
क्षोभमंडल में विभिन्न गैसों का संघटन
क्षोभमंडल वायुमंडल की सबसे निचली परत है, जिसमें वायुमंडल की अधिकांश गैसें, जलवाष्प एवं धूल कण पाए जाते हैं। इस मंडल में गैसों का संघटन लगभग समान रहता है।
| गैस | रासायनिक संकेत | प्रतिशत मात्रा | मुख्य महत्व |
|---|---|---|---|
| नाइट्रोजन | N₂ | 78.08% | जीवों के लिए आवश्यक, प्रोटीन निर्माण में सहायक |
| ऑक्सीजन | O₂ | 20.95% | श्वसन एवं दहन के लिए अनिवार्य |
| आर्गन | Ar | 0.93% | निष्क्रिय गैस, विद्युत बल्बों में उपयोग |
| कार्बन डाइऑक्साइड | CO₂ | 0.03% – 0.04% | प्रकाश संश्लेषण एवं ग्रीनहाउस प्रभाव |
| नीऑन | Ne | 0.0018% | प्रकाश उपकरणों में उपयोग |
| हीलियम | He | 0.0005% | हल्की निष्क्रिय गैस |
| मीथेन | CH₄ | 0.0002% | ग्रीनहाउस गैस |
| हाइड्रोजन | H₂ | 0.00005% | सबसे हल्की गैस |
नाइट्रोजन एवं ऑक्सीजन मिलकर क्षोभमंडल की कुल गैसों का लगभग 99 प्रतिशत भाग बनाती हैं।
समताप मंडल (Stratosphere)
समताप मंडल क्षोभमंडल के ऊपर स्थित वायुमंडल की दूसरी परत है। यह मंडल सामान्यतः पृथ्वी की सतह से लगभग 50 किलोमीटर की ऊँचाई तक फैला होता है।
इस मंडल में ऊँचाई के साथ तापमान में वृद्धि होती है, जिसका प्रमुख कारण ओजोन गैस द्वारा पराबैंगनी किरणों का अवशोषण है।
- समताप मंडल में वायु का प्रवाह लगभग क्षैतिज होता है।
- यह मंडल अपेक्षाकृत स्थिर होता है।
- इस मंडल में बादलों एवं मौसम संबंधी घटनाओं का अभाव पाया जाता है।
समताप मंडल की ऊपरी सीमा को समतापसीमा (Stratopause) कहा जाता है।
ओजोन परत
ओजोन परत समताप मंडल का एक महत्वपूर्ण भाग है। यह सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करती है।
ओजोन परत के बिना पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं होता।
ओजोन परत को पृथ्वी की सुरक्षा ढाल कहा जाता है।
मध्यम मंडल (Mesosphere)
मध्यम मंडल समताप मंडल के ऊपर स्थित वायुमंडल की तीसरी परत है। यह परत पृथ्वी की सतह से लगभग 80 किलोमीटर की ऊँचाई तक विस्तृत होती है।
इस मंडल में ऊँचाई के साथ तापमान पुनः घटने लगता है।
- इस मंडल में वायुमंडलीय घनत्व बहुत कम होता है।
- अधिकांश उल्काएँ इसी मंडल में जलकर नष्ट हो जाती हैं।
मध्यम मंडल की ऊपरी सीमा को मध्यमसीमा (Mesopause) कहा जाता है।
आयन मंडल (Ionosphere)
आयन मंडल मध्यम मंडल के ऊपर स्थित वायुमंडल की एक महत्वपूर्ण परत है। यह परत लगभग 80 किलोमीटर से 400 किलोमीटर की ऊँचाई तक विस्तृत होती है।
इस मंडल में गैसें आयनित अवस्था में पाई जाती हैं, अर्थात यहाँ धनात्मक एवं ऋणात्मक आयन उपस्थित रहते हैं।
- आयन मंडल रेडियो तरंगों के परावर्तन में सहायक होता है।
- रेडियो संचार के लिए यह मंडल अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- इस मंडल में ऑरोरा (ध्रुवीय ज्योति) जैसी घटनाएँ देखी जाती हैं।
आयन मंडल की उपस्थिति के बिना लंबी दूरी का रेडियो संचार संभव नहीं होता।
आयन मंडल की परतें
आयन मंडल को इलेक्ट्रॉनों के घनत्व एवं आयनीकरण की तीव्रता के आधार पर कई परतों में विभाजित किया गया है। इन परतों का अध्ययन रेडियो संचार की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
D परत
D परत आयन मंडल की सबसे निचली परत है। यह लगभग 60 से 90 किलोमीटर की ऊँचाई के बीच पाई जाती है।
- इस परत में आयनीकरण की मात्रा बहुत कम होती है।
- यह परत दिन के समय ही विकसित होती है।
- यह रेडियो तरंगों को परावर्तित नहीं करती, बल्कि अवशोषित कर लेती है।
- रात्रि के समय यह परत लगभग समाप्त हो जाती है।
E परत
E परत D परत के ऊपर स्थित होती है। यह लगभग 90 से 140 किलोमीटर की ऊँचाई के बीच पाई जाती है।
- इस परत में आयनीकरण मध्यम स्तर का होता है।
- यह मध्यम दूरी की रेडियो तरंगों के परावर्तन में सहायक होती है।
- इस परत को केनेली-हेविसाइड परत भी कहा जाता है।
F परत
F परत आयन मंडल की सबसे ऊँची एवं सबसे अधिक आयनित परत है। यह लगभग 140 किलोमीटर से 400 किलोमीटर अथवा उससे अधिक ऊँचाई तक विस्तृत होती है।
दिन के समय यह परत दो उप-परतों में विभक्त हो जाती है।
F₁ परत
- यह लगभग 140 से 200 किलोमीटर की ऊँचाई पर स्थित होती है।
- यह परत दिन के समय ही स्पष्ट रूप से विकसित होती है।
F₂ परत
- यह लगभग 200 से 400 किलोमीटर या उससे अधिक ऊँचाई पर स्थित होती है।
- यह परत दिन और रात दोनों समय बनी रहती है।
- दीर्घ दूरी की रेडियो संचार व्यवस्था में यह परत सबसे अधिक उपयोगी होती है।
आयन मंडल की F₂ परत रेडियो संचार की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण परत मानी जाती है।
बहिर्मंडल (Exosphere)
बहिर्मंडल वायुमंडल की सबसे बाहरी एवं अंतिम परत है। यह आयन मंडल के ऊपर स्थित होती है।
इस मंडल में गैसों का घनत्व अत्यंत कम होता है और यहाँ हाइड्रोजन एवं हीलियम गैसें प्रमुख रूप से पाई जाती हैं।
- इस मंडल की कोई स्पष्ट ऊपरी सीमा नहीं होती।
- कृत्रिम उपग्रह इसी मंडल में परिक्रमा करते हैं।
वायुमंडल की परतों का संक्षिप्त सारांश
| मंडल | औसत ऊँचाई | मुख्य विशेषताएँ |
|---|---|---|
| क्षोभमंडल | 8–16 किमी | सभी मौसमीय घटनाएँ |
| समताप मंडल | 50 किमी | ओजोन परत, ताप वृद्धि |
| मध्यम मंडल | 80 किमी | उल्काओं का दहन |
| आयन मंडल | 400 किमी तक | रेडियो तरंग परावर्तन |
| बहिर्मंडल | अनिश्चित | उपग्रहों की परिक्रमा |
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