भू आकृतियां एवं उनका विकास

Sharvan Patel
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भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

अध्याय-11 : भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

पृथ्वी की सतह पर विभिन्न प्रकार की भू-आकृतियाँ पाई जाती हैं। इन भू-आकृतियों का निर्माण अपक्षय, अपरदन तथा निक्षेपण जैसी भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप होता है।

अपक्षय की प्रक्रिया के पश्चात भू-आकृतिक कारकों द्वारा अपरदन की क्रिया संपन्न होती है।

निक्षेपण प्रक्रिया अपरदन की ही परिणति है, जिसके द्वारा अपरदित पदार्थ निम्न भागों में जमा हो जाते हैं।

अपरदन एवं निक्षेपण की संयुक्त क्रिया से धरातलीय स्वरूप में निरंतर परिवर्तन होता रहता है।

छोटे से मध्यम आकार के स्थलरूपों को भू-आकृति कहा जाता है।

आपस में संबंधित अनेक भू-आकृतियाँ मिलकर किसी क्षेत्र के भू-दृश्य का निर्माण करती हैं।

प्रवाहयुक्त जल

प्रवाहयुक्त जल भू-आकृति निर्माण का एक अत्यंत महत्वपूर्ण कारक है।

प्रवाहयुक्त जल के दो प्रमुख घटक होते हैं – धरातलीय प्रवाह तथा रैखिक प्रवाह।

घाटियाँ प्रवाहयुक्त जल द्वारा निर्मित प्रमुख अपरदनात्मक स्थलरूप हैं।

बाढ़कृत मैदान प्रवाहयुक्त जल द्वारा निर्मित प्रमुख निक्षेपात्मक स्थलरूप हैं।

नदी की अवस्थाएँ

युवावस्था

  • इस अवस्था में नदी का प्रवाह तीव्र होता है।
  • अपरदन की क्षमता अधिक होती है।
  • V-आकार की घाटियाँ बनती हैं।
  • जलप्रपात एवं क्षिप्रिकाएँ पाई जाती हैं।

प्रौढ़ावस्था

  • इस अवस्था में नदी का वेग कुछ कम हो जाता है।
  • अपरदन के साथ-साथ निक्षेपण की प्रक्रिया भी आरंभ हो जाती है।
  • घाटियाँ चौड़ी हो जाती हैं तथा पार्श्व अपरदन प्रमुख हो जाता है।
  • बाढ़कृत मैदानों का विकास इसी अवस्था में होता है।
  • नदी मार्ग में विसर्प (Meanders) बनने लगते हैं।

वृद्धावस्था

  • इस अवस्था में नदी का ढाल अत्यंत मंद हो जाता है।
  • नदी का प्रवाह धीमा हो जाता है और अपरदन क्षमता घट जाती है।
  • निक्षेपण की प्रक्रिया प्रमुख हो जाती है।
  • नदी मार्ग में तीव्र विसर्प विकसित होते हैं।
  • गोखरू झीलों (Oxbow Lakes) का निर्माण होता है।

प्रवाहयुक्त जल द्वारा निर्मित अपरदनात्मक स्थलरूप

  • V-आकार की घाटियाँ
  • गॉर्ज एवं कैनियन
  • जलप्रपात एवं क्षिप्रिकाएँ
  • अवनिम्न कुंड
  • नदी वेदिकाएँ

प्रवाहयुक्त जल द्वारा निर्मित निक्षेपात्मक स्थलरूप

  • बाढ़कृत मैदान
  • प्राकृतिक तटबंध
  • डेल्टा
  • गोखरू झील

भौम जल (Ground Water)

भौम जल वह जल है जो धरातल के नीचे चट्टानों की संधियों, दरारों एवं छिद्रों में संचित रहता है।

वर्षा का जल भूमि में रिसकर भौम जल का निर्माण करता है। भौम जल चट्टानों के प्रकार, संरचना एवं जलवायु पर निर्भर करता है।

भौम जल द्वारा निर्मित अपरदनात्मक स्थलरूप

  • घोलरंध्र (Lapies)
  • डोलाइन
  • यूवाला
  • पोल्ये
  • कंदराएँ (Caves)

चूना पत्थर तथा डोलोमाइट चट्टानों में भौम जल की रासायनिक क्रिया से कास्ट स्थलाकृति का विकास होता है।

भौम जल द्वारा निर्मित निक्षेपात्मक स्थलरूप

  • स्टैलेक्टाइट
  • स्टैलेग्माइट
  • स्तंभ

कास्ट स्थलाकृति का विकास मुख्यतः चूना पत्थर क्षेत्रों में होता है।

हिमनद (Glaciers)

हिमनद बर्फ के विशाल पिंड होते हैं, जो गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से धीमी गति से प्रवाहित होते हैं।

हिमनद सामान्यतः उच्च पर्वतीय क्षेत्रों तथा ध्रुवीय प्रदेशों में पाए जाते हैं।

हिमनद के प्रकार

  • पर्वतीय हिमनद
  • महाद्वीपीय हिमनद

हिमनद द्वारा निर्मित अपरदनात्मक स्थलरूप

  • सर्क (Cirque)
  • एरेट (Arete)
  • हॉर्न (Horn)
  • U-आकार की घाटियाँ
  • फियोर्ड

हिमनद द्वारा निर्मित निक्षेपात्मक स्थलरूप

  • हिमोढ़ (Moraines)
  • एस्कर
  • ड्रमलीन
  • आउटवॉश मैदान
हिमनद स्थलरूपों का विकास हिमनद की अपरदन एवं निक्षेपण क्रिया का परिणाम होता है।

तरंगें एवं धाराएँ

समुद्री तटों पर भू-आकृतियों के निर्माण में तरंगों एवं समुद्री धाराओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

तरंगें तटीय भागों में अपरदन, परिवहन एवं निक्षेपण की क्रियाएँ करती हैं।

तरंगों द्वारा निर्मित अपरदनात्मक स्थलरूप

  • समुद्री भग्रु (Sea Cliff)
  • तरंग कंदरा (Sea Cave)
  • समुद्री मेहराब (Sea Arch)
  • समुद्री स्तंभ (Stack)

तरंगों द्वारा निर्मित निक्षेपात्मक स्थलरूप

  • पुलिन (Beach)
  • स्पिट (Spit)
  • बार
  • लैगून

पवन (Wind)

मरुस्थलीय क्षेत्रों में पवन एक प्रमुख भू-आकृतिक कारक है।

पवन द्वारा अपरदन मुख्यतः अपवाहन एवं घर्षण की क्रिया से होता है।

पवन द्वारा निर्मित अपरदनात्मक स्थलरूप

  • मशरूम शैल
  • पेड़ीमेंट
  • पेड़ीप्लेन
  • प्लाया

पवन द्वारा निर्मित निक्षेपात्मक स्थलरूप

  • बरखान
  • सीफ
  • अनुदैर्ध्य बालुका टीले
  • अनुप्रस्थ बालुका टीले

मरुस्थलीय भू-दृश्य का निर्माण मुख्यतः पवन की क्रियाओं के परिणामस्वरूप होता है।

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